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कार्यशाला सुरक्षा अभ्यासsafety

दुर्घटना(Accident):-

     दुर्घटना एक अनियोजित तथा अनियंत्रित घटना है, जिसमें किसी वस्तु पदार्थ या व्यक्ति की क्रिया या प्रतिक्रिया के कारण व्यक्तिगत चोट लगने की सम्भावना बनी रहती है। वाद्युतिक कार्य करते समय की गई जरा सी असावधानी दुर्घटना का कारण बन सकती है। 

दुर्घटनाओं के कारण:- कार्यक्षेत्र में होने वाले दुर्घटनाओं के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित है।

1. असावधानी- कारखानों में होने वाली अधिकतर दुर्घटनाएं कार्य के दौरान की गई असावधानी के कारण होती है। कार्य करते समय कार्य की चिन्ता के साथ-साथ का कारीगर को अपनी तथा दूसरों की सुरक्षा का भी पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए।

2. अरुचि- कभी-कभी कारीगर कार्य में रूचि खो बैठता है ऐसे समय में दुर्घटना होने की संभावना अधिक रहती है।

3. जल्दबाजी- कारखाना मालिक के दबाव के कारण या, अपने अधिक लाभ के लिए कारीगर आवश्यकता से अधिक जल्दी कार्य करता है जिससे दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है।

4. अज्ञानता- उपकरण या मशीन की पूर्ण जानकारी न होने पर उसके साथ छेड़छाड़ करना अथवा इसका प्रचालन करना भी दुर्घटना का एक प्रमुख कारण हो सकता है।

5. उत्सुकता- उत्सुकता मानव स्वभाव में बसी होती है, परन्तु इस पर कारखाने में कार्यरत कारीगरों को अंकुश लगाना चाहिए क्योंकि ज्यादा उत्सुक व्यक्ति जल्दी दुर्घटना का शिकार बनता है।

6. असुरक्षित हस्त औजार- कई कारखानों में मशीनों का रख-रखाव ठीक ना होने के कारण मशीनें असुरक्षित अवस्था में भी प्रयोग होती रहती है, जो अवश्य ही दुर्घटना का कारण बन जाती है। इसी प्रकार असुरक्षित हैण्ड-टूल से भी दुर्घटना हो सकती है।

7. असुरक्षित ले-आउट- कारखाने में विभिन्न मशीनें स्थापित करते समय उनके लिए पर्याप्त स्थान छोड़ना चाहिए क्योंकि कई बार अपर्याप्त स्थान न होने के कारण भी दुर्घटना घट सकती है।

8. कार्य करने का अनुपयुक्त तरीका- अनजाने में कई बार कारीगर काम करने का अनुपयुक्त तरीका अपना लेते हैं जो दुर्घटना का एक प्रमुख कारण है।

9. स्वच्छता की कमी- कार्यशाला में कार्य करने के उपरान्त शॉप-फ्लोर या मशीन की ठीक से सफाई न होने के कारण भी दुर्घटना हो सकती है। जैसे तेल पर पैर स्लिप होना, कहीं भी ठोकर लग जाना आदि।

10. अनुशासन की कमी- अनुशासन ना होने पर कर्मचारी आपस में हंसी-मजाक करने लगते हैं, जो कई बार दुर्घटना का कारण बन जाता है।

11. असुरक्षित पहनावा- ढीले कपड़े, टाई, मफलर आदी का प्रयोग कारखाने में वर्जित होता है। कारखाने की आवश्यकता के अनुरूप ही कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कारीगर के लम्बे बाल भी मशीन में फंस कर दुर्घटना का कारण बन सकते है। अतः कारीगर को कार्यशाला के अनुरूप ही सुरक्षित कपड़े पहनना चाहिए।

12. प्रकाश की अनुचित व्यवस्था- मशीनों पर कारीगर जहां टूल द्वारा कटाई करता है उस स्थान पर पर्याप्त प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रकाश की उचित व्यस्था न होने के कारण भी दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।

13. खतरे वाले पदार्थों के साथ विशेष सावधानी ना होना- बहुत से कारखानों में विस्फोटक , तेजाब, ज्वलनशील या जहरीली गैसेों का प्रयोग किया जाता है। कारखाने में जब भी इस प्रकार के पदार्थों को प्रयोग में लाया जाए तब विशेष सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा दुर्घटना का कारण बन सकते है।

14. अस्वस्थता या थकान- कभी-कभी श्रमिक आर्थिक तंगी के कारण बीमारी या कमजोर होते हुए भी कार्य पर आ जाते है तथा चक्कर खाकर या कमजोरी के कारण मशीन पर गिर पड़ते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते है।

सुरक्षा के प्रकार:- यह तीन प्रकार के होते है।

 1. निजी सुरक्षा, 2. मशीन सुरक्षा, 3. साधारण सुरक्षा

1. निजी सुरक्षा- निजी सुरक्षा किसी ने ठीक ही कहा है की जान है तो जहान है इसलिए हमेशा याद रखें यदि आप अपनी सुरक्षा करेंगे तो अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगे तथा इसके साथ ही देश को भी प्रगति की ओर ले जाएंगे।

2. मशीन सुरक्षा – मशीन कारीगर की निजी सम्पत्ति के समान होता है इसलिए कारीगर को उसकी सुरक्षा तथा रखरखाव की पूरी जिम्मेदारी होता है। इस मशीन के कारण ही कारीगर अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता है।

3. साधारण सुरक्षा- इसमें निजी सुरक्षा तथा मशीन सुरक्षा के साथ-साथ कटिंग व मापी औजारों और मार्किंग टूलों की सुरक्षा तथा सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए।

सुरक्षा चिन्ह:- सुरक्षा की दृष्टि से विभिन्न मशीनों तथा कार्यशाला आदि की दीवारों पर विभिन्न निर्देश, चिन्हों के रूप में (निशान के रूप में) बनाए जाते हैं। यह चिन्ह चार प्रकार के ग्रुपों में होते है।

1. निषेधात्मक चिन्ह,   2. अनिवार्य चिन्ह,   3. चेतावनी चिन्ह,   4. सूचनात्मक चिन्ह

1. निषेधात्मक चिन्ह(Prohibition Signs)- इस प्रकार के चिन्ह वृताकार होते है। जिसका बैकग्राउण्ड सफेद तथा लाल रंग का बॉर्डर क्रॉस बार के साथ होता है। इसकी आकृति काले रंग की होती है। इन चिन्हों के द्वारा किसी विशेष प्रकार के कार्य को करने से माना किया जाता है। जैसे, धूम्रपान न करना, आग न जलाना, दौड़ने से रोकना आदि।

निषेधात्मक चिन्ह
धूम्रपान निषेध

आकृति

वृत्ताकार

रंग

सफेद पृष्ठ-भूमि पर काला चिन्ह

अर्थ

ऐसा न करने को दर्शाता है

उदाहरण

धूम्रपान निषेध, आग जलने से मना, दौड़ने से मना इत्यादि

2. अनिवार्य चिन्ह(Mandatory Signs)- यह भी वृत्त के आकार में बने होते है किन्तु इनकी पृष्ठभूमि नीला तथा चित्र सफेद होता है। इसमें बॉर्डर तथा क्रॉस बार नहीं बना होता है। यह चित्र के माध्यम से किसी कार्य को करने के लिए बनाए जाते है।  

अनिवार्य चिन्ह

दस्ताना पहनना

 अनिवार्य चिन्ह

हेलमेट पहनना

आकृति

वृत्ताकार

रंग

नीली पृष्ठ-भूमि पर सफेद चिन्ह

अर्थ

ऐसा करने को दर्शाता है

उदाहरण

दस्ताना पहनना, हेलमेट पहनना, हाथ धोना इत्यादि

 3. चेतावनी चिन्ह(Warning Signs)- यह चिन्ह त्रिभुजाकार होते है, जिसकी पृष्ठभूमि पीली तथा आकृति काले रंग की होती है। इसके माध्यम से चेतावनी दी जाती है कि उक्त स्थान पर किसका खतरा हो सकता है।

चेतावनी चिन्हआग का संकट

 चेतावनी चिन्ह

वैद्युत अघात का संकट

आकृति

त्रिभुजाकार

रंग

काला बार्डर और चित्र के साथ पीली पृष्ठ-भूमि

अर्थ

ऐसे संकट से सावधान रखने के लिए

उदाहरण

आग का संकट, वैद्युत अघात का संकट, इत्यादि

4. सूचनात्मक चिन्ह(Information Signs)- यह वर्गाकार आकृति में बने होते हैं जो कि हरे पृष्ठभूमि पर सफेद चिन्ह अथवा सफेद पृष्ठभूमि पर लाल चिन्ह से बनाए जाते है। इन चिन्हों द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा सम्बन्धित सूचनाएँ दी जाती है। जैसे प्राथमिक उपचार की सुविधा, आपातकालीन दरवाजा आदि।

 

सूचनात्मक चिन्हप्राथमिक चिकित्सा

आकृति

वर्गाकार अथवा आयताकार

रंग

हरे पृष्ठ-भूमि पर सफेद चिन्ह

अर्थ

सुरक्षा सामग्री की सूचना देने के लिए

उदाहरण

प्राथमिक चिकित्सा इत्यादि

आग(Fire):-

     औद्योगिक सुरक्षा की दृष्टि से आग बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। आग लगने से बहुत ही ज्यादा जान-माल की हानि होती है। किसी पदार्थ में आग लगने के लिए तीन चीजों का होना आवश्यक होता है। 1. ईंधन, 2. ऊष्मा और 3. ऑक्सीजन। इन तीनों कारकों में से किसी भी एक कारक की अनुपस्थिति में आग नहीं लग सकती है या लगी हुई आग बुझ जाती है। अतः आग बुझाने के लिए इन्हीं तीन कारकों में से किसी एक कारक को हटाया जाता है।

आग

कार्यशाला में आग लगने के कारण:-

1. वैद्युतिक शार्ट-सर्किट अथवा स्पार्किंग

2. ज्वलनशील पदार्थों का गलत रख-रखाव।

3. विस्फोटक पदार्थों के उपयोग में लापरवाही।

4. बीड़ी-सिगरेट के अनबुझे टुकड़े

5. ज्वलनशील गैसों की निकासी का उचित व्यवस्था न होना।

6. सर्दियों में आग जलाने के बाद लापरवाही।

आग के प्रकार- दहन होने वाले पदार्थों के आधार पर आग को निम्न श्रेणीयों के अन्तर्गत रखा गया है।

1. श्रेणी ‘A’ अग्नि- इस श्रेणी के अन्तर्गत लकड़ी, कागज, जूट आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि को बुझाने के लिए शीतल जल की बौछार या साधारण शुष्क रसायन उपयुक्त होती है।

2. श्रेणी ‘B’ अग्नि- इसके अन्तर्गत ज्वलनशील द्रव जैसे मिट्टी का तेल, डीजल, पेट्रोल, आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इन्हें बुझाने के लिए झाग वाले यन्त्र एवं CO2 वाले अग्निशामक यन्त्र प्रयुक्त होते है। इस प्रकार की आग पानी की बौछार की सहायता से नहीं बुझाये जा सकते।

3. श्रेणी ‘C’ अग्नि- इसके अन्तर्गत ज्वलनशील गैसे तथा बिजली से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि के कारण विस्फोट होने की सम्भावना बनी रहती है। इस प्रकार की अग्नि को बुझाने के लिए CO2 तथा हेलोन जैसे शुष्क रसायन का उपयोग करना चाहिए।

4. श्रेणी ‘D’ अग्नि- इसके अन्तर्गत दहनशील धात्विक पदार्थ जैसे सोडियम, पोटैशियम, मैग्निशियम आदि से लगने वाली अग्नि आती है। इस अग्नि को बुझाने के लिए CO2, शुष्क चूर्ण, CTC प्रकार के अग्निशामक, शुष्क रेत आदि का उपयोग किया जाता है। इसमें जल अथवा झाग वाले अग्निशामक का उपयोग नहीं करना चाहिए।

अग्निशामक यन्त्र(Fire Extinguisher):- यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा जलती हुई वस्तुओं पर द्रव, गैस या चूर्ण का छिड़काव करके जलती हुयी वस्तु से ऑक्सीजन की सप्लाई को रोक कर आग को बुझाया जाता है। इसके द्वारा छिड़का जाने वाला द्रव, गैस या चूर्ण स्वयं ज्वलनशील नहीं होता और न ही जलने में सहायक होता है।

अग्निशामक यन्त्र मुख्ता निम्न प्रकार के होते है-

1. जल युक्त अग्निशामक यन्त्र,   2. फोम टाइप अग्निशामक यन्त्र,   3. शुष्क पाउडर टाइप अग्निशामक यन्त्र,

4. कार्बन-डाई-ऑक्साइड टाइप अग्निशामक यन्त्र, 5. कार्बन टेट्राक्लोराइड टाइप अग्नियशामक यन्त्र

अग्निशामक यन्त्र

प्राथमिक उपचार:- कार्यशाला में कार्य करते समय कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती है और जब कोई भी व्यक्ति चोटिल हो जाता है तो उसे प्राथमिक उपचार की अत्यन्त आवश्यकता होती है इसी उद्देश्य से कार्यशाला में कुछ विशिष्ट सामग्री एवं दवाएं सुरक्षा किट के रूप में रखी जाती है

प्राथमिक उपचार की कुछ प्रमुख बातें-

1. दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को दुर्घटना स्थल से हटकर दुसरे स्थान पर आराम की स्थिति में लिटाना चाहिए

2. पीड़ित के आस-पास से भीड़ को हटाकर वातावरण शान्त और हवादार बनाना चाहिए

3. पीड़ित को श्वास लेने में दिक्कत हो तो उसे कृत्रिम श्वास देना चाहिए

व्यक्तिगत रक्षक उपकरण-

1. सिर की सुरक्षा हेलमेट, हेयर नेट, बम्प केप आदि से की जाती है

2. आँख की सुरक्षा के लिए चश्मा या हस्त स्क्रीन चश्मा पहनना चाहिए

3. चेहरे की सुरक्षा के लिए फेस शील्ड उपयोग करना चाहिए

4. कान की सुरक्षा के लिए ईयर-प्लग, मफ अथवा ईयर-वाल्ब लगाना चाहिए

5. शारीर की सुरक्षा इन्की जैकेट, कोट, एप्रन, बॉडी आर्मर आदि से करना चाहिए

6. पैरों की सुरक्षा के बूट, जूतें, एन्किलेट् आदि से करना चाहिए

कृत्रिम श्वास प्रक्रिया- कृत्रिम श्वास की चार प्रमुख विधियाँ है-

1. सिल्वेस्टर विधि

2. शैफर विधि

3. मुँह-से-मुँह में हवा भरना

4. कृत्रिम श्वास यन्त्र द्वारा

1. सिल्वेस्टर विधि- इस विधि में पीड़ित को पीठ के बल लिटाकर पीठ के निचे तकिया लगा दिया जाता है जिससे सीना कुछ ऊपर उठ जाता है पीड़ित के सिर के पास बैठकर उसके दोनों हाथों को मोड़कर उसके सिने पर रख देना चाहिए तथा 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देना चाहिए फिर उसके हाथ को सिर के पास सीधा कर देना चाहिए इस प्रक्रिया को 10-12 बार प्रति मिनट की दर से करना चाहिए, जब तक कि पीड़ित की श्वास सामान्य न हो जाये इससे फेफड़े की हवा बार-बार अन्दर बाहर होती है और पीड़ित की श्वास क्रिया सामान्य हो जाती है

2. शैफर विधि- इस विधि में पीड़ित को पेट के बल लिटाकर पेट के निचे पतला तकिया लगा दिया जाता है फिर पीड़ित के घुटने के पास बैठकर दोनों हाथों को पीठ पर रख देना चाहिए तथा 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देकर फिर छोड़ दें, फिर 2-3 सेकेण्ड तक दबाव देकर फिर छोड़ दें इस प्रक्रिया को 10-12 बार प्रति मिनट की दर से करना चाहिए जब तक की पीड़ित की श्वास सामान्य न हो जाये

3. मुँह-से-मुँह में हवा भरना- इस विधि में पीड़ित के मुँह में सीधे अपने मुँह से हवा भरकर श्वसन क्रिया पूर्ण करायी जाती है इसे लाबोर्ड विधि(Labord Method) भी कहते है

 

 

 

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