Admission open for session 2025-27
>

तुल्यकालिक मोटर(Synchronous Motor)

तुल्यकालिक मोटर(Synchronous Motor)-

     तुल्यकालिक मोटर एक ऐसा मोटर है जो तुल्यकालिक गति पर घूमता है किन्तु स्वयं चालू नहीं होता है। इसको तुल्यकालिक घूर्णन  गति पर घूमने के लिए किसी अन्य स्रोत की आवश्यकता होती है किन्तु एक बार तुल्यकालिक घूर्णन गति प्राप्त कर लेने पर यह उसी गति पर घूर्णन करता रहता है। जिसके बाद इस पर लोड संयोजित किया जा सकता है। इसकी घूर्णन गति निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है।

N= (f×120)∕P 

 जहाँ,                 Nतुल्यकालिक मोटर की घूर्णन गति

                        f =ए.सी. श्रोत की फ्रीक्वेन्सी

                   P = रोटर पोल्स की संख्या

सिद्धान्त:-

तुल्यकालिक मोटर

     इस मोटर का सिद्धान्त चित्र द्वारा समझाया गया है। इसमें स्टेटर को डी.सी. सप्लाई तथा आर्मेचर को ए.सी. सप्लाई दिया गया है जिससे स्टेटर पर स्थिर चुम्बकीय क्षेत्र N तथा S बने है। जबकि किसी छड़ (स्थिति-a) रोटर पर क्रमशः 1,2,3 पोल्स पर क्रमशः S, N तथा S चुम्बकीय क्षेत्र बने है। इस स्थिति में रोटर प्रतिकर्षण के कारण घुमने (माना दक्षिणावर्त) का प्रयास करेगा किन्तु 1/50 सेकेण्ड (ए.सी. फ्रीक्वेंसी) में ही स्थिति-b आ जाएगी जिससे रोटर में N की जगह S और S की जगह N हो जायेगा और आकर्षण के कारण रोटर घूमना बंद कर देगी। फिर 1/50 सेकेण्ड में स्थिति-a आ जाएगी और रोटर घुमाने का प्रयास करेगा किन्तु पुनः 1/50 सेकेण्ड बाद स्थिति-b आ जाएगी और रोटर घूमना बंद कर देगी। अब यदि रोटर को किसी वाह्य श्रोत द्वारा इतना तेज घुमा दिया जय कि 1/50 सेकेण्ड में स्टेटर के N-ध्रुव के सामने रोटर का पोल-2 हटकर पोल-1 आ जाये तो, उस समय पोल-1 में N-ध्रुव ही होगा और प्रतिकर्षण का बल सदैव काम करेगा जिससे मोटर घुमने लगेगी।

तुल्यकालिक मोटर के प्रकार:-

1. सामान्य तुल्यकालिक मोटर, 2. ऑटो तुल्यकालिक मोटर

1. सामान्य तुल्यकालिक मोटर:- इस मोटर में स्टेटर पर थ्री-फेज वाइण्डिंग स्थापित की जाती है और रोटर पर स्थायी ध्रुवता पैदा करने के लिए डी.सी. वाइण्डिंग की जाती है। रोटर को डी.सी. सप्लाई प्रदान करने के लिए मोटर की सॉफ्ट से एक छोटा डी.सी. शंट जनित्र जोड़ा जाता है, जिसे एक्साइटर कहते हैं। इसमें रोटर को किसी प्राइम मूवर के द्वारा तुल्यकालिक गति पर घुमाया जाता है। जैसे ही रोटर तुल्यकालिक गति प्राप्त कर लेता है प्राइम मूवर को हटा लिया जाता है और मोटर सतत तुल्यकालिक गति पर घूमती रहती है।

लाभ- 1. सामान्य लोड से अधिक लोड होने पर रोटर की गति कम हो जाती है तथा मोटर रुक जाती हैं।

2. इसकी क्षेत्र उत्तेजना को परिवर्तित करके मोटर के पॉवर-फैक्टर को भी परिवर्तित किया जा सकता है।

3. वोल्टेज के घटने-बढ़ने(5-10%) का मोटर की गति पर कोई प्रभाव नही पड़ता है।

हानि- 1. वोल्टेज के अधिक घटने-बढ़ने पर मोटर रुक जाती है।

2. मोटर का स्टार्टिंग तक शून्य होता है अत: इसे लोड पर चालू नहीं किया जा सकता।

3. मोटर को चालू करने के लिए दोनों प्रकार का श्रोत(A.C. D.C.) तथा एक प्राइम मूवर की आवश्यकता पड़ती है।

4. मोटर की घूर्णन गति को घटाया-बढ़ाया नही जा सकता।

उपयोग- 1. नियत घूर्णन गति पर कार्य करने वाले कम प्रेशर पंप आदि में।

2. जनित्र अथवा अल्टरनेटर के घूर्णन गति नियत रखने के लिए।

2. ऑटो तुल्यकालिक मोटर:- सामान्य तुल्यकालिक मोटर को लोड के साथ चालू नहीं किया जा सकता। इस कमी को दूर करने के लिए ऑटो तुल्यकालिक मोटर बनाई गई यह दो प्रकार के होते हैं।

1. इंडक्शन टाइप ऑटो तुल्यकालिक मोटर

2. सैलिएन्ट पोल टाइप ऑटो तुल्यकालिक मोटर

1. इंडक्शन टाइप ऑटो तुल्यकालिक मोटर:-

   इस मोटर के रोटर पर 3-फेज स्लिप रिंग वाइण्डिंग स्थापित कर दी जाती है जिसको एक वाह्य 3-फेज रिहोस्टेट से संयोजित कर दिया जाता है। यह पूरा संयोजन 3-फेज इंडक्शन मोटर की तरह कार्य करता है। जब मोटर को स्टार्ट किया जाता है तो 3-फेज रिहोस्टेट मोटर को तुल्यकाली घूर्णन गति तक घूमता है और जब मोटर तुल्यकाली घूर्णन गति पर घूमने लगता है तो एक चेंजर स्विच की सहायता से रिहोस्टेट को परिपथ से अलग कर दिया जाता है तथा रोटर को एक्साइटर से संयोजित कर दिया जाता है।

लाभ- 1. यह लोड के साथ भी चालू किया जा सकता है।

2. इसको चालू करने के लिए अलग से किसी प्राइम मूवर की आवश्यकता नहीं होती है।

3. यह मोटर इकाई पावर फैक्टर पर कार्य करता है।

हानि- 1. इसकी लागत अधिक होती है।

उपयोग- 1. सीमेंट रोलिंग कॉटन तथा पेपर मिलो जैसे भारी लोड वाले स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है।

2. सैलिएन्ट पोल टाइप ऑटो तुल्यकालिक मोटर:-

     इस प्रकार के मोटर के रोटर पर उभरे हुए पोल्स बनाए जाते हैं। इन पोल्स पर वाइण्डिंग की गई होती है जिसमें डी.सी. सप्लाई दी जाती है। यह डी.सी. सप्लाई एक्साइटर से दी जाती है। यह मोटर कम लोड पर चालू करने के लिए प्रयुक्त होता है। इस मोटर का उपयोग विद्युत वितरण लाइनों में पावर फैक्टर सुधारने के लिए किया जाता है।

तुल्यकालिक मोटर को चालू करने की विधियाँ:- सामान्य तुल्यकालिक मोटर स्वयं चालू नहीं हो पाते हैं अतः उन्हें निम्न वीधियों से चालू किया जाता है।

1. पोनी मोटर द्वारा:- यह एक ऐसी मोटर होती है जिसकी पोल की संख्या तुल्यकालिक मोटर की पोल की संख्या से एक जोड़ा कम रखा जाता है। जिससे इसकी घूर्णन गति तुल्कालिक मोटर की घूर्णन गति से अधिक होती है। जब पोनी मोटर से तुल्यकालिक मोटर को स्टार्ट किया जाता है उस समय तुल्यकालिक मोटर में डी.सी. सप्लाई नहीं दी जाती है। किंतु जब तुल्यकालिक मोटर अपने तुल्यकालिक गति पर घूर्णन करने लगता है तब एक्साइटर से रोटर को डी.सी. सप्लाई शुरू कर दिया जाता है तथा पोनी मोटर को हटा लिया जाता है।

2. डी.सी. मोटर द्वारा:- इसमें तुल्कालिक मोटर को स्टार्ट करने के लिए डी.सी. कम्पाउण्ड मोटर का उपयोग किया जाता है। इसके लिए तुल्यकालिक मोटर के स्टेटर को 3-फेज सप्लाई से संयोजित कर डी.सी. मोटर चली कर दी जाती है। जब तुल्यकालिक मोटर की घूर्णन गति तुल्यकालिक गति के बराबर हो जाती है तो एक्साइटर द्वारा रोटर पोल्स को पूर्ण डी.सी. वोल्टेज प्राप्त होने लगता है तथा डी.सी. मोटर को बंद कर दिया जाता है।

3. सैल्फ-स्टार्टिंग विधि:- इसमें तुल्यकालिक मोटर के रोटर पर स्क्विरल केज अथवा स्लिप-रिंग प्रकार की वाइण्डिंग की जाती है। जिससे तुल्यकालिक मोटर को इण्डक्शन मोटर की तरह चालू किया जा सकता है तथा तुल्यकालिक गति प्राप्त कर लेने पर यह तुल्यकालिक मोटर की तरह कार्य करने लगता है।

तुल्यकालिक मोटर तथा इण्डक्शन मोटर की तुलना

तुल्यकालिक मोटर

इण्डक्शन मोटर

1. इसकी घूर्णन गति प्रत्येक लोड पर स्थिर रहती है

1. इसकी घूर्णन गति लोड बढ़ाने पर घट जाती है

2. यह लैगिंग तथा लीडिंग दोनों पॉवर फैक्टर पर काम करता है

2. इस मोटर को चलाने के  बाद पॉवर फैक्टर लैगिंग हो जाता है

3. इसका उपयोग यान्त्रिक शक्ति प्राप्त करने तथा पॉवर फैक्टर को सुधारने के लये भी किया जाता है

3. इसका उपयोग यान्त्रिक शक्ति प्राप्त करने के लये किया जाता है

4. यह केवल तुल्यकालिक गति पर ही घूर्णन करता है।

4. यह तुल्यकालिक गति से कम गति पर घूर्णन करता है।

5. यह स्वयं चालू नही होता है

5. यह स्वयं चालू हो जाता है

6. इसकी प्रारम्भिक टार्क शून्य होती है

इसकी प्रारम्भिक टार्क अधिकतम होती है

7. इसको चलाने के लिए ए.सी. व डी.सी. दोनों प्रकार के श्रोत की आवश्यकता होती है

7. इसको चलाने के लिए केवल ए.सी.  श्रोत की आवश्यकता होती है

 

हंटिंग या फेज स्विंगिंग:- तुल्यकालिक मोटर में प्रायः यह दोष रहता है जब इस मोटर के लोड में परिवर्तन होता है तो मोटर की घूर्णन गति भी परिवर्तित होने का प्रयास करती है इसी समय आरोपित वि.वा.बल द्वारा रोटर वाइण्डिंग में प्रेरित होने वाले वि.वा.बल का फेज कोण परिवर्तित हो जाता है, जो घूर्णन गति परिवर्तन का विरोध करता है। जिसके करण रोटर कम्पन करने लगता है। इसे ही हंटिंग कहते है।

निवारण:- इसको दूर करने के लिए तुल्यकालिक मोटर के रोटर पोल्स पर फील्ड वाइण्डिंग के अतिरिक्त स्क्विरल फेज रोटर की भाँति केज वाइण्डिंग भी स्थापित की जाती है। इसे डैम्पर वाइण्डिंग कहा जाता है। जब रोटर की घूर्णन गति, तुल्यकालिक गति के बराबर हो जाती है तो डैम्पर वाइण्डिंग का कार्य स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

डैम्पर वाइण्डिंग

0 comments:

Post a Comment