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मानक एवं मानकीकरण(Standard and Standardization)

मानक(Standard):-

    किसी भी पदार्थ को मापने के लिए एक ऐसा नियत माप जिसका उपयोग उस पदार्थ को मापने के लिए किया जाता है, उस पदार्थ का मानक कहलाता है जैसे लंबाई को मापने के लिए 1 मीटर नियत माप है जिसका उपयोग हम लंबाई को मापने के लिए करते हैं, इसी प्रकार समय को मापने के लिए 1 सेकण्ड नियत माप है। अतः लम्बाई का मानक 1 मीटर है तथा समय का मानक 1 सेकंड है।(M.K.S. पद्धति में)

मानकीकरण(Standardization):- मानकीकरण वस्तुओं के उत्पादन या निर्माण के संबंध में मानक निर्धारित करती है जिससे कि उत्पाद की शुद्धता अथवा श्रेष्ठता का पता चलता है। यह एक प्रकार से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करती है। न्यूनतम मानक बनाए रखने के लिए सरकार ने भारतीय मानक ब्यूरो(BIS) की स्थापना की है। 

भारतीय मानक ब्यूरो(BIS):- यह भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है, जो विभिन्न वस्तुओं जैसे इलेक्ट्रिकल उपकरण खाद्य पदार्थ और निर्माण सामग्री आदि के लिए मानक स्थापित करता है। इसकी स्थापना 1986 में हुई थी 

BIS उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता को प्रमाणित करता है कि वह स्थापित मानकों के अनुरूप है या नहीं।

BIS यह बताता है कि किसी उत्पाद पर ISI मार्क लगाना है या नहीं। अतः जिन उत्पादों पर ISI मार्क लगा हुआ होगा वे उत्पाद BIS के मानक के अनुरूप होंगे

 



कैलीपर्स(Callipers):-

 कैलीपर्स(Callipers):-

    कैलीपर्स एक अप्रत्यक्ष मापी औजार होता है। इसका प्रयोग किसी जॉब के सिरों अथवा व्यास आदि को मापने के लिए किया जाता है। इससे माप लेने के लिए पहले जॉब को कैलीपर्स से माप लिया जाता है फिर कैलीपर को स्टील रुल से मापा जाता है। यह सामान्यता हाई कार्बन स्टील(High Carbon Steel) अथवा माइल्ड स्टील(Mild Steel) से बनाए जाते हैं। इनके माप लेने वाले शिरो को कठोर तथा टेम्पर्ड कर दिया जाता है जिससे ये घिसे नहीं।  इनका साइज रिवेट के केंद्र से माप लेने वाले सिरे तक की दूरी से प्रकट किया जाता है।

कैलिपर्स के प्रकार (Types of Callipers):-

जोड़ तथा टांगों के आकार के आधार पर कैलीपर्स विभिन्न प्रकार के होते हैं।

कैलीपर्स

जोड़  के आधार पर:-

 1 -  फर्म ज्वाइंट कैलीपर्स(Form Joint Callipers)

 2  -  स्प्रिंग ज्वाइंट कैलीपर्स(Spring Joint Callipers)

1.फर्म ज्वाइंट कैलीपर्स:- चित्र के अनुसार इस प्रकार के कैलिपर्स में दोनों टांगे एक ही बिंदु पर हिंज की हुई होती है। किसी वस्तु या जॉब की माप लेने के लिए कैलिपर्स को एक आवश्यक साइज तक खोला जा सकता है। हिंज बिंदु को थोड़ा टाईट रखा जाता है जिससे इसे खोलने व बन्द करने में थोड़ा बल लगाना पड़े और इसमें ली गयी दुरी अपने-आप ही कम या ज्यादा न हो जाय।

2. स्प्रिंग ज्वाइंट कैलीपर्स:- स्प्रिंग कैलिपर्स में टांगे एक स्प्रिंग वाले फल क्रम रोलर पर लगी होती हैं इस प्रकार के कैलिपर्स को खोलने और बंद करने के लिए एक स्क्रु तथा नट लगा हुआ होता है जिसे। Adjusting nut कहते है। Adjusting nut को कस देने से कैलीपर्स में ली गयी दूरी तब तक परिवर्तित नहीं होती है जब तक कि nut को घुमाया न जाय

टांगों के आधार पर-

टांगो के आधार पर भी कैलीपर्स दो प्रकार के होते हैं।

1. वाह्य कैलीपर्स(Outside Callipers)

2. आन्तरिक कैलीपर्स(Inside Callipers)

1. वाह्य कैलीपर्स:- इसका उपयोग जॉब की बाहरी माप जैसे शाफ्ट का व्यास, लम्बाई आदि के लिए किया जाता है। ये 100 मिमी, 150 मिमी, 200 मिमी, 300 मिमी आदि साइजों में मिलते है।

2. आन्तरिक कैलीपर्स:- जॉब के अन्दर जैसे होल, झिर्री, आन्तरिक चौड़ाई आदि को मापने के लिए आन्तरिक कैलीपर्स का प्रयोग किया जाता है। ये 75 मिमी, 100 मिमी, 150 मिमी, 200 मिमी, 300 मिमी आदि साइजों में मिलते है।

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छेनियाँ(Chisels):-

    यह एक ऐसा हस्त औजार है जिसका उपयोग पतले धातु के शीट अथवा अन्य अवयओं को काटने के लिए सबसे अधिक किया जाता है। इसके कटाई वाले सिरें को टेपर बनाया जाता है तथा किनारे को ग्राइण्ड करके कटिंग एज बनाया जाता है। शीर्ष को 70के कोण पर शंक्वाकार बनाया जाता है। उपयोगिता के आधार पर इसकी कटिंग एज को 30से 70 के बीच रखा जाता है यह हाई-कार्बन-स्टील से बने छड़ से बनाया जाता है। इसकी कटिंग एज को हार्ड तथा टैम्पर कर दिया जाता है जिससे इसकी धार जल्दी खराब नही होती है।

Chisel

छेनी के प्रकार:-

1. गर्म छेनी(Hot Chisel):- धातुओं को गर्म अवस्था में काटने के लिए जिस छेनी का प्रयोग किया जाता है उसे गर्म छेनी कहते है। इसमें छेनी का कटाई धार 30 होता है।

Hot Chisel

2. ठण्डी छेनी(Cold Chisel):- धातुओं को बिना गर्म किये ठण्डी अवस्था में ही काटने के लिए जिस छेनी का प्रयोग किया जाता है उसे ठण्डी छेनी कहते है। इसमें छेनी का कटाई धार 60 होता है। ठण्डी छेनी भी अलग-अलग कार्य के आधार पर कई प्रकार की होती है।

1. फ्लैट छेनी(Flat Chisel):- यह छेनी सबसे अधिक प्रयोग में लायी जाती है। इसकी चौड़ाई इसके मोटाई से अधिक होती है। इसके कटिंग एज को हल्का गोला रखा जाता है।

2. क्रॉस कट छेनी(Cross Cut Chisel):- इसमें छेनी की चौड़ाई को इसकी मोटाई से कम रखा जाता है। यह शॉफ्ट अथवा हब में की-वे बनाने के काम में आता है।

3. डायमण्ड कट छेनी(Diamond PointChisel):- इसका कटिंग एज चौकोर होता है। इसकी सहायता से V-ग्रूव काटे जाते है।

4. हाफ राउण्ड छेनी(Half Round Chisel):- इस छेनी का कटिंग एज अर्द्ध-वृत्ताकार होता है। इसकी सहायता से की-वे तथा ऑयल ग्रूव काटे जाते है।

5. गो-मुख छेनी(Cow-Mouth Chisel):- इस छेनी का शैंक खोखला तथा आगे से टेपर होता है। इसका कटिंग एज गाय के मुख की तरह होता है। इसका उपयोग कार्यखण्ड को परिधि पर काटने के काम आता है।

6. खोखली छेनी(Hollow Chisel):- इस छेनी का कटिंग एज गोल होता है तथा यह अन्दर से खोखला होता है। इसकी सहायता से पतले शीट अथवा मुलायम पदार्थों में छिद्र बनाये जाते है।

Hollow Chisel

7. ऑफ-सेट छेनी(Offset Chisel):- चित्र की तरह छेनी के अगले भाग को पीटकर एक साइड में ऑफसेट कर दिया जाता है। इस छेनी का प्रयोग चिपिंग करने तथा स्लॉट के चिप्स आदि को साफ करने के लिए किया जाता है।

Offset Chisel

चिपिंग(Chipping):- जब छेनी की सहायता से किसी जॉब के ऊपरी सतह से धातु की पतली परत को काटकर अलग किया जाता है तो इस प्रक्रिया को चिपिंग कहते है। चिपिंग के लिए छेनी को धातु की सतह से लगभग 40 के कोण पर झुकाकर रखा जाता है, जिससे छेनी की कटिंग एज को लगभग 10 का क्लियरेंस एंगल तथा चिप्स को 20 का रेक एंगल मिल जाता है, जिससे कटिंग आसानी से होती है। यही पर यदि क्लियरेंस एंगल कम हो जायेगा तो छेनी धातु की सतह पर फिसल जाएगी जबकि क्लियरेंस एंगल अधिक रखने पर छेनी धातु में गड़ जाएगी। कठोर धातु के लिए कटिंग एज का कोण अधिक तथा नरम धातु के लिए कटिंग एज का कोण कम रखा जाता है।

Chisel Cutting Angle


सरफेस प्लेट(Surface Plate)

 

1. सरफेस प्लेट:- यह वर्गाकार अथवा आयताकार ढलवां लोहे का बना होता है। इसके उपरी सतह को मशीन व स्क्रैप करके परिशुद्ध बना दिया जाता है। भारतीय मानक संस्था (I.S.I.) के अनुसार इसका साइज़ 50X50 सेमी तथा मोटाई 2.5 से 5 सेमी होता है। इसका उपयोग शूक्ष्ममापी यन्त्रों द्वारा मार्किंग तथा जॉब कि समतलता को चेक करने के लिए किया जाता है।

सरफेस प्लेट के प्रकार:- धातु के अनुसार यह निम्न प्रकार के होते है-

1. ढ़लवा लोहे का सरफेस प्लेट

2. ग्रेनाइट सरफेस प्लेट

3. ग्लास सरफेस प्लेट

1. ढलवा लोहे का सरफेस प्लेट:- यह प्रायः सघन तन्तु(close grain) ढलवां लोहे का बना होता है। इसमें मृदु स्पात के दो हत्थे इसे उठाने के लिए लगे होते है। इसके ऊपरी किनारे निचे के आधार से बाहर निकले होते है जिससे आवश्यकता पड़ने पर जॉब को क्लैम्प से बाधा जा सके। इसकी यथार्थता ग्रेड में प्रदर्शित कि जाती है।  A ग्रेड वाली सरफेस प्लेट कि यथार्थता 0.001 से 0.0025 मिमी होती है।

2. ग्रेनाइट सरफेस प्लेट:- यह एक विशेष पत्थर से बना होता है जिसे ग्रेनाइट कहते है। कार्य करते समय इसपर खरोंच आने पर भी इसकी यथार्थता पर कोई प्रभाव नही पड़ता है इसपर न तो जंग लगता है और न ही इस पर ताप का कोई प्रभाव पड़ता है। कार्य के अनुसार ये कई आकर तथा साइज़ के मिलते है।

3. ग्लास सरफेस प्लेट:- यह काँच कि बनी होती है। इसपर जंग नही लगता है। यह 15X15 सेमी से 60X90 सेमी के साइजो में मिलते है। इसकी यथार्थता 0.004 मिमी से 0.008 मिमी तक होती है। इसका उपयोग छोटे कार्यो के लिए किया जाता है।

2. ऐंगल प्लेट:- यह कास्ट आयरन अथवा कास्ट स्टील का बना होता है। इसकी दोनों भुजाएँ तथा साइड के किनारे समकोण पर परिशुद्ध मशीन करके जुड़े होते है। यह कई साइजों में मिलते है। इसका साइज़ इसके लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊंचाई से लिया जाता है। जैसे-150X150X100 मिमी

ऐंगल प्लेटके प्रकार:- यह चार प्रकार के होते है।

1. प्लेन या सॉलिड ऐंगल प्लेट                 2. झिर्रियों वाली ऐंगल प्लेट

3. एडजैस्टेबल ऐंगल प्लेट               4. बक्से कि आकृति वाला ऐंगल प्लेट

1. प्लेन या सॉलिड ऐंगल प्लेट:- इसकी दोनों सतह तथा भुजाएँ एक दूसरे से समकोण(90) पर जुडी होती है। इसके पीछे कि ओर सपोर्ट लगा होता है यह सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला ऐंगल प्लेट होता है।

2. झिर्रियों वाली ऐंगल प्लेट:- इस ऐंगल प्लेट की भी सतह तथा भुजाएँ एक दुसरे से समकोण पर जुडी होती है। इस ऐंगल प्लेट की एक सतह पर लम्बवत तथा दूसरी सतह पर क्षैतिज झिर्रियाँ कटी होती है। इन झिर्रियों की सहायता से जॉब को आवश्यकतानुसार लम्बवत तथा क्षैतिज पकड़ा जाता है।

3. एडजैस्टेबल ऐंगल प्लेट:- इस ऐंगल प्लेट कि दोनों भुजाएँ कब्जे की भांति खुलती है तथा नट-वोल्ट कि सहायता से आपस में जुड़ी होती है। इसमें डिग्री के निशान अंकित होते है जिससे इनको आवश्यकतानुसार किसी भी कोण पर सेट किया जा सकता है।

4. बक्से कि आकृति वाला ऐंगल प्लेट:- यह बॉक्स के आकार का बना होता है। इसके चारो फेस एक दूसरे से समकोण पर जुड़े होते है। इसके चारो फेसों पर झिर्री कटी होती है जिससे जॉब को किसी भी ओर से पकड़कर मार्किंग किया जाता है।

ऐंगल प्लेट कि परिशुद्धता:- परिशुद्धता के अनुसार यह ग्रेड-1 तथा ग्रेड-2 में मिलते है। ग्रेड-1 के ऐंगल प्लेट ग्रेड-2 कि अपेक्षा अधिक परिशुद्ध होते है तथा यह अधिकतर टूलरूम में प्रयोग किये जाते है। ग्रेड-2 के ऐंगल प्लेट प्रायः मशीन शॉप में प्रयोग किये जाते है।

 

 

 

Rivets

 

रिवेट(Rivets)-

किसी धातु की बनी एक गोल छड़ जिसके एक सिरे पर शीर्ष बना हो और दुसरा सिरा सीधा हो उसे रिवेट(rivet) कहते है। रिवेट पर कोई चुड़ी नही कटी होती है। रिवेट अपने शंक  के व्यास  से पहचानी जाती है।

Parts of Rivets

रिवेट

रिवेट के निम्नलिखित तीन पार्ट्स होते है।
1.
शीर्ष (Head)
2.
शैंक (Shank) or Body
3.
पूंछ (Tail)

1. Head

रिवेट का शीर्ष  उपयोग के अनुसार अलग-अलग आकार के होते है। जैसे-

2. Shank or Body

Head और tail के बीच के बेलनाकार भाग को शैंक कहते है। इसका व्यास चादरों में किये गये छिद्र से थोडा कम होता है।

3. Tail

रिवेट के दूसरे सिरे को tail कहते है यह थोडा टेपर होता है। चादरों को जोड़ने के लिए रिवेट के tail से दुसरा शीर्ष बनाया जाता है।

Types of Rivets

शीर्ष के बनावट के आधार पर रिवेट निम्न प्रकार के होते है।

1. Snap Head या Cap Head Rivet

       Snap head rivet की एक आम type है, जो ज्यादातर प्रयोग की जाती है। Snap head rivet structural loose के लिए प्रयोग की जाती है जैसे sheet metal आदि। इस प्रकार की rivet का head प्राय: semi circle जैसा होता है। Riveting के साथ इस rivet के tail सिरे को hammer की चोट मारकर दूसरा head बनाया जाता है। Snap head rivet की thikness 0.7D होती है, और head के नीचें का diameter 1.6D होता है।

2. Pan Head Rivet

     इस rivet के head की shape cone के आकार की होती है। इसका प्रयोग प्राय: head के कार्यो में किया जाता है। इसकी riveting बहुत मजबूत होती है। इसके tail सिरे पर hammer की चोट मारकर दूसरा head बनाया जाता है। इस head की उपर की thikness का dia. D तथा  head के नीचें का diameter 1.6D होता है। Head की ऊँचाई 0.7D होती है।

3. Pen Head With Taper Nack

       इसका प्रयोग engineering line में heavy work के लिए किया जाता है। क्योकि इसका head मजबूत होता है। Head के नीचें की nack taper होती है। Pan head rivets का use boiler work and ship work यानी की समुंद्री जहाज में किया जाता है।

4. Counter Sunk Head Rivet

       इस rivet का head counter shape में होता है। इसका प्रयोग वहा पर किया जाता है जहां पर दो पार्ट्स को जोड़ने के पश्चात उपर की surface समतल रखनी हो। इसके head के अनुसार या head की shape के अनुसार parts में hole बना होता है। Plate को जोड़ने के पश्चात rivet का head उसी hole में पार्ट्स के अंदर रहता है।

5. Conical Head Rivet

      इस rivet का प्रयोग boiler ship work में किया जाता है। इस rivet का head conical sahpe में होता है। इस rivet के tail सिरे पर hammer की चोट मारकर दूसरा head बनाया जाता है।

6. Flat Head Rivet

ऐसे rivet का head प्राय: flat यानी की समतल होता है। इस rivet का प्रयोग हल्के कार्यो में किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर shank metrial and febrication के कार्यो में किया जाता है।

7. Mushroom Head Rivet

इस rivet का head प्राय: mushroom जैसा होता है। इसका प्रयोग धातु की surface के उपर rivet के head की ऊँचाई को कम करने के लिए किया जाता है।

8. Ellipsoidal Head Rivet

इस rivet का head ellipse जैसा होता है. इस rivet का प्रयोग genral कार्यो में किया जाता है।

रिवेटिंग(Riveting)-

रिवेट का उपयोग करके दो या अधिक धातु चादरों को स्थाई रूप से जोड़ा जाता है।

रिवेटिंग औजार- चादरों तथा प्लेटों को रिवेट्स से जोड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के औजारों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें रिवेटिंग औजार कहते है ये निम्नलिखित प्रकार के होते है

1.      रिवेट सेट(Rivet Set)- यह एक प्रकार का खोखला पञ्च होता है जिसके होल में रिवेट का टेल चला जाता है इसका उपयोग दोनों चादरों में निकटता लाने के लिए किया जाता है।

2.      डॉली(Dolly)- इसका उपयोग रिवेट के हेड को सहारा देने तथा उसे छतिग्रस्त होने से बचाने के लिए किया जाता है।

3.      रिवेट स्नेप(Rivet Snap)- इसका उपयोग रिवेटिंग के बाद उसको सही आकर देने के लिए किया जाता है।

4.      ड्रिफ्ट(Drift)- यह बेलनाकार पंच की तरह होता है जिसका उपयोग दोनों प्लेटों में किये गये सुराख़ को संकेंद्रित करने के लिए किया जाता है।

5.      कोकिंग औजार(Caulking Tool)- प्लेटों के किनारे तथा रिवेटों के हेड के किनारों को प्लेट की सतह से मिलाने के लिए इस औजार का प्रयोग किया जाता है।


 


ड्रिल के प्रकार तथा दोष

 ड्रिल के साइज- ड्रिल चार मानक साइजों में मिलते है।

1. मिमी साइज ड्रिल(मीट्रिक ड्रिल)(Millimeter Size Drill)

2. इंच या फ्रैक्शन साइज ड्रिल(Inch or Fraction Size Drill)

3. लैटर साइज ड्रिल(Letter Size Drill)

4. नम्बर साइज ड्रिल(Number Size Drill)

1. मिमी साइज ड्रिल(मीट्रिक ड्रिल)(Millimeter Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज़ मिमी में मापा जाता है जो प्रायः 0.5 मिमी से 10 मीमी तक 0.1 मिमी के अंतराल से होता है। जैसे- 0.5, 0.6, 0.7, 0.8, ........9.8, 9.9, 10 मिमी। पुनः 10 मिमी से बड़े ड्रिल 0.5 मिमी के अंतराल से बढ़ते है। जैसे- 10, 10.5, 11, 11.5,.......... आदि।

2. इंच या फ्रैक्शन साइज ड्रिल(Inch or Fraction Size Drill)-

    इसमें सबसे छोटा ड्रिल 1/16 इंच का होता है उसके बाद 1/64 इंच के अंतराल पर बढ़ते हुए 1/2 इंच तक होता है। जैसे- 1/16, 5/64, 6/64, 7/64,..........31/64, 1/2 इंच।

3. लैटर साइज ड्रिल(Letter Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज अंग्रेजी के अक्षर ‘A’ से ‘Z’ तक द्वारा दर्शाया जाता है। A(=0.234 इंच) साइज का ड्रिल सबसे छोटा तथा Z(=0.413 इंच) साइज़ का ड्रिल सबसे बड़ा होता है।

4. नम्बर साइज ड्रिल(Number Size Drill)-

     इसमें ड्रिल का साइज ‘1’ नम्बर से ‘80’ नम्बर तक द्वारा दर्शाया जाता है। 1(=0.228 इंच) साइज का ड्रिल सबसे बड़ा तथा 80(=0.0135 इंच) साइज़ का ड्रिल सबसे छोटा होता है।

ड्रिल के दोष-

1. ड्रिल का अधिक गर्म होना- कर्तन गति अधिक होने से, फीड दर अधिक होने से, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होने से, शीतलन उपयुक्त न होने से, पॉइंट कोण सही न होने से, क्लियरेंस कोण सही न होने से।

2. सुराख खुरदरा होना- फीड दर अधिक होने से, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होने से, शीतलन उपयुक्त न होने से।

3. नाप से बड़ा सुराख़ होना- कर्तन कोर की असमान लम्बाई, कर्तन कोणों का असमान कोण, नोक को असमान रूप से पतला करना, ड्रिल मशीन के स्पिंडल का अपने केंद्र पर न चलाना, ड्रिल की नोक का अपने केंद्र पर न होना।

4. ड्रिल का टूटना- कर्तन गति अधिक होना, फीड दर अधिक होने से, कार्य को मजबूती से न पकड़ना, ड्रिल को सुचारू रूप से न पकड़ना, ड्रिल की कर्तन धार तेज न होना, नलिकाओं में छीलन फसना।

5. छीलन का असमान प्रवाह- कर्तन धार असमान होना, नोंक कोण ड्रिल के केंद्र में न होना।

ड्रिल के दोष

ड्रिल ग्राइंड- ड्रिल की धार को तेज करने के लिए ड्रिल को ग्राइंडर पर रगड़ा जाता है। इस प्रक्रिया में निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए।

1. ग्राइंडिंग व्हील के फेस को एक समान ड्रैस कर लेना चाहिए।

2. ड्रिल के फ्लूटेड भाग को बाएँ हाथ में और शैंक को दाएँ हाथ से मजबूती से पकड़ना चाहिए।

3. कटिंग एंगल के आधे कोण पर ड्रिल को झुकाते हुए लिप या कटिंग एज को धीरे से ग्राइंडिंग व्हील पर दबाना चाहिए।

4. आवश्यक लिप क्लीयरेंस के लिए शैंक को निचे की ओर झुकाकर रखना चाहिए।

5. दूसरा लिप भी इसी प्रकार ग्राइंड करना चाहिए।

ड्रिल ग्राइंड