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दिष्ट धारा जनित्र(D.C. Generator)

दिष्ट धारा जनित्र(D.C. Generator):- जिस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा(A.C.) का उत्पादन प्रत्यावर्तक द्वारा किया जाता है, उसी प्रकार दिष्ट धारा(D.C.) का उत्पादन दिष्ट धारा जनित्र(D.C. Generator) द्वारा किया जाता है यह यांत्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह डायनमो का बड़ा रूप होता है

दिष्ट धारा जनित्र फैराडे के विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त पर कार्य करता है। अर्थात यदि किसी चुम्बकीय क्षेत्र में किसी चालक को इस प्रकार गति कराया जाय कि चालक चुम्बकीय बल रेखाओं को काटे तो उस चालक में वि०वा०ब०(विद्युत् वाहक बल) उत्पन्न हो जाता है।

दिष्ट धारा जनित्र के भाग:-

1. बॉडी, 2. फील्ड पोल, 3. आर्मेचर, 4. कम्यूटेटर, 5. ब्रश तथा ब्रश-होल्डर आदि

1. योक(Yoke):- मशीन के बाहरी भाग को बॉडी या योक कहते है इसको कास्ट-आयरन का बनाया जाता है इसी के अन्दर सभी पार्ट्स फिट किये जाते है

2. फील्ड पोल:- योक के अन्दरुनी सतह पर जुटे की तरह बनाया जाता है जिस पर चालक लपेटा जाता है जो चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करता है छोटे डायनमो में  इसके स्थान पर स्थायी चुम्बक लगे होते है ये कम से कम 2 तथा अधिक से अधिक 8 होते है

3. आर्मेचर:- यह बेलन के आकर का होता है जो सिलिका-इस्पात की पत्तियों को एक साथ चिपकाकर बनाया जाता है इसके बाहरी सतह पर स्लॉट कटे होते है जिनके अन्दर चालक लपेटे जाते है आर्मेचर को फील्ड-पोल के अन्दर इस प्रकार से फिट किया जाता है की यह फील्ड-पोल से बिना स्पर्श किये इसके अन्दर घूमे

4. कम्यूटेटर:- यह वृत्ताकार डिस्क की तरह ताँबे की पट्टी का बना होता है जिसे बैकेलाइट के ऊपर ढलाई करके बनाया जाता है ताँबे की पत्तियों को आर्मेचर पर लपेटे गये चालक से जोड़ दिया जाता है इसको आर्मेचर के शाफ़्ट पर लगाया जाता है यह आर्मेचर में उत्पन्न वि०वा०ब०(विद्युत् वाहक बल)  को वाह्य परिपथ में पहुचाने का मुख्य साधन है

5. ब्रश तथा ब्रश-होल्डर:- कम्यूटेटर शाफ़्ट के साथ फिक्स होता है जिससे कम्यूटेटर शाफ़्ट के साथ हमेशा घूमता रहता है इसके ऊपर कार्बन ब्रश लगा होता है जो स्थाई होता है तथा हमेशा कम्यूटेटर से संपर्क बनाये रखता है ब्रश को ब्रश-होल्डर में लगाया जाता है ब्रश-होलाडर से ही वि०वा०ब०(विद्युत् वाहक बल)  वाह्य परिपथ में उपयोग के लिए प्राप्त होता है

दिष्ट धारा जनित्र की कार्य प्रणाली:- यह फैराडे के विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है तथा इसमें उत्पन्न वि०वा०ब० की दिशा फ्लैमिंग के दायें हाथ के नियम के अनुसार होती है।

“फ्लैमिंग का दायें हाथ का नियम के अनुसार, यदि दाहिनें हाथ के अँगूठे तथा प्रथम दो उँगुलियों को परस्पर समकोण पर इस प्रकार रखा जाय कि अँगूठा चालक की दिशा, पहली उँगली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को इंगित करे तो दूसरी उँगली की दिशा वि०वा०ब० की दिशा होगी।”

नोट- चालक हर 180 अंश घुमने के बाद विपरीत दिशा वाली चुम्बकीय फ्लक्स को काटती है अतः जनित्र द्वारा उत्पन्न किया गया वि०वा०ब०, अल्टरनेटिंग(A.C.) स्वाभाव का होता है आउटपुट प्राप्त करने की विधि के अनुसार विद्युत् वाहक बल A.C. अथवा D.C. होता है

1. स्लिप रिंग विधि(Slip Ring Method)- इस विधि से प्राप्त विद्युत् वाहक बल A.C. प्रकार का होता है

2. स्प्लिट रिंग विधि(Slip Ring Method)- इस विधि से प्राप्त विद्युत् वाहक बल D.C. प्रकार का होता है

वि०वा०ब०(EMF) समीकरण-

किसी जनित्र द्वारा प्राप्त वि०वा०ब० निम्न सूत्र से ज्ञात किया जाता है

                            E = ΦZNP/60A

      Φ = प्रति पोल चुम्बकीय फ्लक्स(वैबर्स में)

        Z = आर्मेचर चालको की संख्या

        N = आर्मेचर की घूर्णन गति(R.P.M. में )

        P = पोल्स की संख्या

        A = आर्मेचर वाइण्डिंग में समान्तर पथों की संख्या

गणना को आसानी से समझने तथा हल करने के लिए दिष्ट धरा जनित्र का चित्र निम्न प्रकार बनाया जाता है

दिष्ट धरा जनित्र

 डी. सी. जनित्र के प्रकार:- वाइण्डिंग के आधार ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते है

1. सीरीज जनित्र, 2. शंट जनित्र, 3. कम्पाउण्ड जनित्र

1. सीरीज जनित्र:- इस जनित्र में आर्मेचर तथा फील्ड-वाइण्डिंग दोनों श्रेणी क्रम में जुड़े रहते है इसमें फील्ड-वाइण्डिंग मोटे तार की कम लपेट वाली बनाई जाती है जिससे जनित्र का प्रतिरोध कम से कम रहे। इस जनित्र को बिना लोड संयोजित किये नही चलाना चाहिए।

डी.सी. सीरीज जनित्र

जनित्र द्वारा निकलने वाले  विद्युत् धारा का मान-    

IL = E / (R+ Rse + RL)

IL = Ia = Ise 
IL = लोड विद्युत् धारा(एम्पियर में ),
E = त्पन्न वि०वा०ब०(वोल्ट्स में ),
Ra = आर्मेचर प्रतिरोध(ओह्म में),
Rse = सीरीज-फील्ड प्रतिरोध(ओह्म में),
RL = लोड प्रतिरोध(ओह्म में)

2. शंट जनित्र:- इस जनित्र में आर्मेचर तथा फील्ड-वाइण्डिंग दोनों समान्तर क्रम में जुड़े रहते है इसमें फील्ड-वाइण्डिंग पतले तार की बनाई जाती है जिससे वह आर्मेचर द्वारा उत्पन्न पूर्ण वि०वा०ब० को सहन कर सके। इसमें आर्मेचर वाइण्डिंग मोटे तार की बनाई जाती है इस जनित्र को बिना लोड संयोजित किये ही चलाना चाहिए। 

जनित्र द्वारा निकलने वाले विद्युत् धारा का मान- 

IIIsh 

 VT = IL.RL
Ia = आर्मेचर धारा(एम्पियर में),

IL = लोड विद्युत् धारा(एम्पियर में ), 

Ish = सीरीज-फील्ड धारा(एम्पियर में),  

VT = टर्मिनल वोल्टेज

RL लोड प्रतिरोध(ओह्म में)

3. कम्पाउण्ड जनित्र:- यह दो प्रकार का होता है

1. शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड जनित्र,    2. लाँग-शंट कम्पाउण्ड जनित्र  

1. शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड जनित्र:- इस जनित्र में फील्ड-वाइण्डिंग को दो भागों में विभक्त करके एक भाग को आर्मेचर के समान्तर क्रम(शंट-फील्ड) में तथा दुसरे भाग को इन दोनों(आर्मेचर और शंट-फील्ड) के साथ श्रेणी क्रम(सीरीज-फील्ड) में जोड़ा जाता है तो उसे शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड जनित्र कहते है।

शॉर्ट-शंट कम्पाउण्ड जनित्र

2. लाँग-शंट कम्पाउण्ड जनित्र:- इस जनित्र में फील्ड-वाइण्डिंग को दो भागों में विभक्त करके एक भाग को आर्मेचर के श्रेणी क्रम(सीरीज-फील्ड) में तथा दुसरे भाग को इन दोनों(आर्मेचर और सीरीज-फील्ड) के साथ समान्तर क्रम(शंट-फील्ड) में जोड़ा जाता है तो उसे लाँग-शंट कम्पाउण्ड जनित्र कहते है।

लाँग-शंट कम्पाउण्ड जनित्र

डी.सी. जनित्र में हानियाँ(Losses इन D.C. Generator)

1. ताम्र हानि, 2. लौह हानि, 3. यांत्रिक हानि

1.ताम्र हानि(Copper Loss):- यह हानि आर्मेचर वाइण्डिंग तथा फील्ड-वाइण्डिंग आदि में लगे तारों के प्रतिरोध के करण होती है इसका मान लोड के मान के आधार पर कम या ज्यादा होता है इसका मान निम्न प्रकार के हानियों को जोड़कर निकाला जाता है 

आर्मेचर हानि(Ia2.Ra), शंट-फील्ड हानि(Ish2.Rsh), सीरीज-फील्ड हानि(Ise2.Rse),

2. लौह हानि(Iron Loss):- यह हानि आर्मेचर तथा फील्ड आदि की कोर्स(cores) में होने वाली हानि होती है यह हानि दो प्रकार की होती है

1. हिस्टरैसिस हानि(Hysteresis Loss)- लोहे का बार-बार चुम्बकित तथा विचुम्बकित होने से जो वैद्युत ऊर्जा की हानि होती है उसे हिस्टरैसिस हानि कहते है इसको ज्ञात करने का सूत्र

हिस्टरैसिस हानि (Wh)   ηBm1.6fV

η = हिस्टरैसिस नियतांक

Bm = चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व (वैबर/मी²)

Bm = चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व वैबर

f = फ्रीक्वेंसी (हर्ट्ज़ में)मी³

V = कोर का आयतन(मी³)

2. एडी करण्ट हानि(Eddy Current Loss)- परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र होने पर किसी चालक के भीतर विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है उसे भँवर धारा (Eddy current) कहते हैं। धारा की ये भवरें चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं जो परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। जिससे विद्युत् ऊर्जा की हानि होती है।

एडी करण्ट हानि (We) = Bm2 f² t²

Bm = चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व (वैबर/मी²)

f = फ्रीक्वेंसी (हर्ट्ज़ में)मी³

t = कोर की मोटाई(मिमी)

डी.सी. जनित्र की दक्षता:- जनित्र की आउटपुट(वैद्युतिक शक्ति) और उसकी इनपुट(यांत्रिक शक्ति) के अनुपात को जनित्र की दक्षता कहते है अतः

जनित्र की दक्षता निम्न प्रकार की होती है-

1. यांत्रिक दक्षता = उत्पन्न वैद्युतिक शक्ति / इनपुट यांत्रिक शक्ति

 ηm = E.Ia /(BHP×735.5)

2. वैद्युतिक दक्षता = आउटपुट वैद्युतिक शक्ति / उत्पन्न वैद्युतिक शक्ति

ηe = VTIL / E.Ia

3. व्यावसायिक दक्षता = आउटपुट वैद्युतिक शक्ति / इनपुट यांत्रिक शक्ति

ηc= VTIL /(BHP×735.5)

दक्षताओं में सम्बन्ध:-

व्यावसायिक दक्षता =  यांत्रिक दक्षता × वैद्युतिक दक्षता

   

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